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कविता

इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं

सुशांत सुप्रिय


देह में फाँस-सा यह समय है
जब अपनी परछाईं भी संदिग्ध है
'हमें बचाओ, हम त्रस्त हैं' -
घबराए हुए लोग चिल्ला रहे हैं
किंतु दूसरी ओर केवल एक
रेकार्डेड आवाज उपलब्ध है -
'इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं'

न कोई खिड़की, न दरवाजा, न रोशनदान है
काल-कोठरी-सा भयावह वर्तमान है
'हमें बचाओ, हम त्रस्त हैं' -
डरे हुए लोग छटपटा रहे हैं
किंतु दूसरी ओर केवल एक
रेकार्डेड आवाज उपलब्ध है -
'इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं'

बच्चे गा रहे वयस्कों के गीत हैं
इस वनैले-तंत्र में मासूमियत अतीत है
बुद्ध बामियान की हिंसा से व्यथित हैं
राम छद्म-भक्तों से त्रस्त हैं
समकालीन अँधेरे में
प्रार्थनाएँ भी अशक्त हैं...
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं

 


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